बांग्लादेश में हाल के महीनों में हुई राजनीतिक उथल-पुथल के बाद अब सांप्रदायिक हिंसा और भीड़तंत्र (Mob Lynching) का एक भयावह चेहरा सामने आ रहा है। मयमनसिंह जिले में अल्पसंख्यक समुदाय के दीपू चंद्र दास की बर्बर हत्या और उसके बाद एक अन्य युवक अमृत मंडल की पीट-पीटकर हत्या ने देश में सुरक्षा व्यवस्था और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
दीपू चंद्र दास हत्याकांड: बर्बरता की पराकाष्ठा
मयमनसिंह के भालुका में एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करने वाले दीपू चंद्र दास की हत्या ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। दीपू पर कथित रूप से ईशनिंदा (पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी) का आरोप लगाया गया था। महज एक आरोप के आधार पर भीड़ ने कानून को अपने हाथ में लिया और दीपू को बेरहमी से तब तक पीटा जब तक उसकी जान नहीं निकल गई।
इतना ही नहीं, भीड़ की क्रूरता यहीं नहीं रुकी; हत्या के बाद उसके शव को एक पेड़ से बांधा गया और सार्वजनिक रूप से आग के हवाले कर दिया गया। यह घटना न केवल एक व्यक्ति की हत्या थी, बल्कि सभ्य समाज की हार का प्रतीक भी थी।
चार आरोपियों ने कबूला गुनाह
इस मामले में पुलिस की तत्परता के बाद चार मुख्य आरोपियों—तारिक हुसैन, मानिक मिया, निजामुल हक और अजमल छागिर—ने अदालत में अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। इन चारों ने वरिष्ठ न्यायिक मजिस्ट्रेट तहमिना अख्तर टोमर की अदालत में धारा 164 के तहत अपने बयान दर्ज कराए।
पुलिस जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं:
-
सहकर्मी ही बने हत्यारे: गिरफ्तार आरोपी उसी फैक्ट्री में काम करते थे जहां दीपू काम करता था।
-
पूर्व-नियोजित हमला: हालांकि पुलिस ने इसे एक बड़ी साजिश मानने से इनकार किया है, लेकिन जिस तरह से घटना को अंजाम दिया गया, वह एक सोची-समझी हिंसा की ओर इशारा करती है।
-
अन्य संलिप्तता: आरोपियों ने कई अन्य लोगों के नाम भी उजागर किए हैं जो इस लिंचिंग में शामिल थे।
अमृत मंडल: हिंसा का अगला शिकार
अभी दीपू चंद्र दास की हत्या का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि मयमनसिंह से ही एक और अल्पसंख्यक युवक, 29 वर्षीय अमृत मंडल उर्फ सम्राट की हत्या की खबर आई। अमृत पर स्थानीय लोगों ने जबरन वसूली का आरोप लगाया और उसे पीट-पीटकर मार डाला। एक के बाद एक हुई इन घटनाओं ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के बीच डर का माहौल पैदा कर दिया है।
अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा: एक चिंताजनक रुझान
बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से ही अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं को निशाना बनाए जाने की खबरें लगातार आ रही हैं। छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा ने इस आग को और हवा दी है। ईशनिंदा या निजी दुश्मनी जैसे आरोपों का सहारा लेकर भीड़ द्वारा न्याय करने की यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है।
निष्कर्ष
दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल की हत्याएं केवल कानून-व्यवस्था की विफलता नहीं हैं, बल्कि यह समाज के बढ़ते कट्टरपंथ की ओर संकेत करती हैं। हालांकि अदालत में आरोपियों के इकबालिया बयान से न्याय की उम्मीद जगी है, लेकिन असली चुनौती भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने और अल्पसंख्यकों में विश्वास बहाल करने की है। क्या बांग्लादेशी प्रशासन इन हिंसक भीड़ पर लगाम लगा पाएगा? यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर आने वाले समय में देश की स्थिरता तय करेगा।