लखनऊ न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की भारी कमी छात्रों की पढ़ाई पर असर डाल रही है। हालात ऐसे हैं कि लोक सेवा आयोग से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसर जॉइनिंग के बावजूद नौकरी शुरू नहीं कर रहे। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अब तक आयोग से चयनित 87 असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यभार ग्रहण नहीं कर पाए हैं, जिससे कॉलेजों में पढ़ाई की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं।
सरकार ने स्थिति सुधारने के लिए डॉक्टरों को दोबारा उनकी पसंद के कॉलेज चुनने का मौका दिया, लेकिन इसका असर भी न के बराबर दिखा। बीते मंगलवार जब 43 असिस्टेंट प्रोफेसरों को बुलाया गया तो उनमें से सिर्फ 8 ही पहुंचे। मेडिकल कॉलेजों में नियुक्ति से दूरी बनाने की सबसे बड़ी वजह वेतन, भत्तों और सुविधाओं की कमी बताई जा रही है, जो उच्च स्तरीय संस्थानों की तुलना में काफी कम हैं।
फरवरी 2022 से 2024 के बीच करीब 150 से अधिक असिस्टेंट प्रोफेसरों का चयन उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के ज़रिये हुआ था। इनमें एनेस्थीसिया, यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी, ईएनटी, पीडियाट्रिक सर्जरी और मनोरोग जैसे महत्वपूर्ण विभागों के विशेषज्ञ शामिल हैं। लेकिन अब इनमें से कई चयनित प्रोफेसर नौकरी जॉइन करने से पीछे हट रहे हैं।
इन प्रोफेसरों का कहना है कि केजीएमयू, एसजीपीजीआई और लोहिया संस्थान जैसे बड़े संस्थानों में उन्हें राजकीय कॉलेजों की तुलना में बेहतर वेतन, शोध की सुविधाएं और तकनीकी संसाधन मिलते हैं। वहां लगभग 30 हजार रुपये ज्यादा वेतन के साथ-साथ शोध भत्ते और सालाना 3 से 4 लाख रुपये तक अन्य लाभ भी मिलते हैं। वहीं, सरकारी मेडिकल कॉलेजों में राजनीतिक दबाव, संसाधनों की कमी और शोध के सीमित अवसरों के चलते डॉक्टर वहां काम करना नहीं चाहते।