मुंबई, 18 जनवरी, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। तेहरान में शनिवार को ईरान के सुप्रीम कोर्ट में एक शख्स ने गोलीबारी की। इस हमले में 2 जजों की मौत हो गई। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता असगर जहांगीर ने दावा किया है कि जजों को उनके कमरों में घुसकर मारा गया है। दोनों जज नेशनल सिक्योरिटी, आतंकवाद, जासूसी के मामलों की सुनवाई कर रहे थे। दोनों पर गोली चलाने के बाद हमलावार ने सुसाइड कर लिया। पूरी घटना में एक और जज भी घायल हुआ है। इसके अलावा एक बॉडीगार्ड भी घायल हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक यह हमला स्थानीय समयानुसार सुबह 10 बजकर 45 मिनट पर हुआ। सुप्रीम कोर्ट के जिन जजों को निशाना बनाया गया, उनकी पहचान अली रजिनी और मोघीसेह के तौर पर हुई है। ये ईरानी न्यायपालिका के वरिष्ठ जजों में शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ज्यादा फांसी की सजा सुनाए जाने के चलते दोनों जजों को हैंगमैन कहा जाता था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक हमलावर जस्टिस डिपार्टमेंट का ही कर्मचारी था। ईरान इंटरनेशनल के मुताबिक तेहरान के कोर्ट हाउस से कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारियों ने कहा है कि हमले के पीछे के मकसद का पता लगाने के लिए जांच शुरू हो गई है। रजिनी की 1988 में भी हत्या की कोशिश की गई थी। उस दौरान उनकी बाइक में मैग्नेटिक बम लगाया गया था। वहीं, अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट के मुताबिक दूसरे जज मोघिसेह पर अमेरिका ने 2019 में बैन लगा दिया था।
वहीं, नाबालिगों को मौत की सजा न देने के यूनाईटेड नेशन कन्वेंशन को साइन करने के बावजूद ईरान उन टॉप देशों में शामिल है, जहां सबसे ज्यादा फांसी की सजा दी जाती है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक ईरान में 9 साल की उम्र पार करने के बाद लड़कियों को मौत की सजा दी सकती है। लड़कों के लिए ये उम्र 15 है। साल 2005 से 2015 के बीच लगभग 73 बच्चों को मौत की सजा दी जा चुकी है। फांसी के तख्त पर पहुंचने से पहले ईरान का हर युवा जिसे मौत की सजा सुनाई गई है वो औसतन सात साल जेल में गुजारता है। कई मामलों में तो यह 10 साल भी है। इंटरनेशल कानूनों के तहत 18 साल से कम उम्र के शख्स को फांसी की सजा देने पर रोक है।