जीवन अनमोल है, लेकिन कभी-कभी एक पल की नासमझी या मासूमियत ऐसी त्रासदी को जन्म देती है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होता है। हरियाणा के करनाल से आई एक हृदयविदारक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यहाँ महज़ एक पतंग लूटने की चाहत में 10 साल के मासूम बच्चे की जान चली गई। यह हादसा न केवल एक परिवार के लिए उम्र भर का दर्द दे गया है, बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर चेतावनी है।
कैसे हुआ यह दर्दनाक हादसा?
जानकारी के अनुसार, करनाल की शिव कॉलोनी में रहने वाला आर्केजी नाम का बच्चा मंगलवार को अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। खेलते-खेलते वह रेलवे स्टेशन के पास पहुँच गया और दीवार फांदकर रेलवे परिसर के भीतर दाखिल हो गया। उस समय आसमान में पतंगें उड़ रही थीं और एक पतंग कटकर नीचे गिरने लगी।
5 रुपये की उस पतंग को पकड़ने के जुनून में मासूम आर्केजी इतना खो गया कि उसे आसपास की दुनिया का होश नहीं रहा। वह रेलवे ट्रैक की ओर भागा, और ठीक उसी समय दिल्ली से अमृतसर की ओर जाने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस वहाँ से गुजरी। ट्रेन की गति लगभग 120 किमी प्रति घंटा थी। बच्चा पतंग को देखने में इतना मशगूल था कि उसे तेज रफ्तार ट्रेन की आहट तक नहीं सुनाई दी। पलक झपकते ही वह ट्रेन की चपेट में आ गया और मौके पर ही उसकी मौत हो गई।
एक संघर्षपूर्ण जीवन का अंत
आर्केजी की कहानी जितनी दुखद है, उतनी ही संघर्षपूर्ण भी थी। बताया जा रहा है कि उसे उसकी सगी माँ रीना देवी से उसकी ननद काली देवी ने गोद लिया था। काली देवी मेहनत-मजदूरी करके बच्चे का पालन-पोषण कर रही थीं। जिस समय यह हादसा हुआ, काली देवी सेक्टर-9 में मजदूरी करने गई थीं। वह घर पर अपनी बुआ (काली देवी) के पास ही रहता था, जो लोगों के घरों में काम कर अपनी जीविका चलाती हैं।
इस मासूम की मौत के बाद पूरी शिव कॉलोनी में मातम का माहौल है। जिस घर में बच्चे की किलकारियां गूँजती थीं, वहाँ अब चीख-पुकार और सन्नाटा है।
सुरक्षा और जागरूकता की कमी
यह घटना रेलवे सुरक्षा और नागरिक जिम्मेदारी पर भी बड़े सवाल खड़े करती है।
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रेलवे ट्रैक के पास की बसावट: रेलवे स्टेशन और पटरियों के पास रहने वाले बच्चों के लिए अक्सर कोई सुरक्षित खेल का मैदान नहीं होता, जिससे वे अनजाने में पटरियों को ही अपना मैदान मान लेते हैं।
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बच्चों की निगरानी: अभिभावकों, विशेषकर कामकाजी वर्ग के लिए बच्चों की हर पल निगरानी करना चुनौतीपूर्ण होता है, जिसका परिणाम कभी-कभी ऐसा भयानक होता है।
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तेज रफ्तार ट्रेनों का खतरा: वंदे भारत जैसी हाई-स्पीड ट्रेनों की आवाज पारंपरिक ट्रेनों से कम होती है और इनकी गति बहुत अधिक होती है, जिससे ट्रैक के पास खड़े व्यक्ति को संभलने का मौका नहीं मिलता।
रेलवे पुलिस की अपील
रेलवे पुलिस ने इस घटना के बाद स्थानीय लोगों से विशेष अपील की है कि वे अपने बच्चों को पटरियों के पास न जाने दें। पतंगबाजी के मौसम में यह खतरा और बढ़ जाता है क्योंकि बच्चों का पूरा ध्यान आसमान की ओर होता है।
निष्कर्ष: क्या एक पतंग की कीमत किसी की जान से बढ़कर हो सकती है? कतई नहीं। यह हादसा हमें सिखाता है कि बच्चों को खतरों के प्रति जागरूक करना और उन्हें पटरियों जैसी जानलेवा जगहों से दूर रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। भगवान मासूम की आत्मा को शांति दे और परिवार को यह असहनीय दुख सहने की शक्ति प्रदान करे।