मुंबई, 10 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर दो दिन पहले हुई तकनीकी गड़बड़ी के पीछे अब बड़ा साइबर षड्यंत्र सामने आ रहा है। प्रारंभिक जांच और तकनीकी विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी GPS के सिग्नल के साथ छेड़छाड़ की गई थी। यह घटना 6 से 7 नवंबर की शाम के बीच हुई, जब कई पायलटों को फेक सिग्नल मिलने लगे। पायलटों के कॉकपिट डिस्प्ले पर विमान की पोजिशन बदल गई और असली रनवे की जगह नकली विजुअल दिखाई देने लगे। कुछ स्क्रीन पर खेत नजर आ रहे थे, जिससे उड़ान की ऊंचाई और दिशा को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई।
स्थिति गंभीर होते देख पायलटों ने GPS-आधारित ऑटो सिस्टम बंद कर मैनुअल कंट्रोल अपना लिया। इसके तुरंत बाद 7 नवंबर को एयरपोर्ट के ऑटोमैटिक मैसेज स्विच सिस्टम (AMSS) में भी तकनीकी खराबी आ गई, जिससे 12 घंटे तक फ्लाइट ऑपरेशन बाधित रहा। 800 से ज्यादा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में देरी हुई और करीब 20 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। एयरपोर्ट का संचालन लगभग 48 घंटे बाद सामान्य हो सका।
जानकारी के मुताबिक, GPS में हुई छेड़छाड़ से एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम यानी ATS की मैसेजिंग भी प्रभावित हुई। कंट्रोल टॉवर को विमानों की स्थिति की जानकारी देर से मिलने लगी। सुरक्षा के लिहाज से विमानों को अन्य शहरों जैसे जयपुर और आसपास के एयरपोर्ट्स पर डायवर्ट किया गया। एयर स्पेस में फ्लाइट्स के बीच की दूरी बढ़ाई गई ताकि कोई बड़ा हादसा न हो।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना सामान्य नहीं है। एक उच्च स्तर के विशेषज्ञ ने बताया कि अमेरिका द्वारा संचालित सिविलियन GPS सिग्नल को हैक करना पहले सिर्फ सैद्धांतिक बात लगती थी, लेकिन अब इसे बहुत आसानी से किया जा सकता है। आशंका है कि दिल्ली एयरपोर्ट की इस घटना में किसी विदेशी साइबर ग्रुप या सरकार की भूमिका हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, हैकर्स ने फेक सिग्नल ब्लास्ट किया, यानी बड़ी संख्या में नकली सिग्नल भेजे, जिससे पायलट भ्रमित हो गए और सिस्टम क्रैश हो गया।
भारत में सिविल एविएशन GPS सिग्नल से छेड़छाड़ के मामलों में हाल के महीनों में तेजी आई है। DGCA के अनुसार, देश में अब तक 465 से ज्यादा ऐसे फेक सिग्नल दर्ज किए जा चुके हैं, जिनमें ज्यादातर घटनाएं जम्मू और अमृतसर के सीमावर्ती इलाकों में हुईं। अमेरिका अब अपने सिविलियन GPS के लिए “चिमेरा सिग्नल” विकसित कर रहा है, जो एन्क्रिप्टेड होंगे और बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रहेंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम “नाविक” इस ऑपरेशन में सक्रिय होता, तो यह घटना रोकी जा सकती थी। नाविक पूरी तरह भारत के नियंत्रण में है और अक्टूबर में इसके तकनीकी मानक तय किए गए हैं। सरकार ने इस मामले की हाई लेवल जांच शुरू कर दी है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) कार्यालय में हुई बैठक में एयरपोर्ट अथॉरिटी, सुरक्षा एजेंसियों और अन्य संस्थानों को शामिल किया गया। जांच का फोकस इस बात पर है कि कहीं इस घटना के पीछे कोई बाहरी ताकत या साइबर हमला तो नहीं था।