हजारों साल पहले मिस्र की रानी क्लीओपेट्रा जिस तोरई (Luffa) से बने स्पॉन्ज का इस्तेमाल नहाने के लिए करती थीं, आज वही हल्की-फुल्की सब्जी चीन के लिए स्टील्थ तकनीक (Stealth Technology) के भविष्य का आधार बन गई है। सुनने में यह अविश्वसनीय लगता है, लेकिन चीन के वैज्ञानिक इस प्राकृतिक फाइबर को हाई-टेक रडार सोखने वाली कोटिंग में बदलने की दौड़ में सबसे आगे निकल आए हैं।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और सरकारी एयरोस्पेस समूह Casic ने तोरई में मौजूद प्राकृतिक 3D फाइबर नेटवर्क को स्टील्थ तकनीक में बदलने का तरीका खोजा है। उनका दावा है कि यह कोटिंग किसी भी फाइटर या जासूसी विमान को स्पेस-बेस्ड रडार से लगभग गायब कर सकती है।
से काम करती है यह तोरई टेक्नोलॉजी?
तोरई को स्टील्थ मैटेरियल में बदलने की प्रक्रिया में जटिल नैनो साइंस का इस्तेमाल होता है:
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कार्बन स्ट्रक्चर में बदलाव: सबसे पहले तोरई के प्राकृतिक फाइबर स्पॉन्ज को प्रोसेस करके एक कार्बन स्ट्रक्चर में बदला जाता है।
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नैनो पार्टिकल्स का मिश्रण: इसके बाद, इसमें निकेल और कोबाल्ट से बने खास नैनो पार्टिकल्स मिलाए जाते हैं।
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रडार सोखना: यह कॉम्बिनेशन मिलकर एक ऐसा मैटेरियल बनाता है जो रडार तरंगों को $99.99\%$ तक सोख लेता है। यह कोटिंग केवल 4 मिलीमीटर पतली होती है, फिर भी यह एक जेट के 50 वर्ग मीटर (sqm) के रडार क्रॉस-सेक्शन को 1 sqm से भी कम दिखा सकती है।
तोरई के अंदर का जालदार स्ट्रक्चर रडार की तरंगों को अंदर खींच लेता है और बार-बार उछालकर उनकी ऊर्जा को खत्म कर देता है। वहीं, नैनोपार्टिकल्स इन तरंगों की दिशा बदलते रहते हैं और अंततः उनकी ऊर्जा गर्मी में बदल जाती है। इस प्रकार, दुश्मन के रडार को भ्रमित कर दिया जाता है।
चीन को इस तकनीक की आवश्यकता क्यों?
पारंपरिक स्टील्थ लड़ाकू विमान (जैसे F-22 या B-2) अपने आकार और विशेष सामग्री से रडार से बचते रहे हैं। लेकिन वैश्विक सैन्य निगरानी अब स्पेस-बेस्ड रडार निगरानी की ओर बढ़ चुकी है।
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लो-अर्थ-ऑर्बिट सैटेलाइट्स: लो-अर्थ-ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स इतने साफ़-सुथरे और हाई-रेजोल्यूशन वाले रडार का इस्तेमाल कर रहे हैं कि पुरानी स्टील्थ तकनीक उनकी नजर से पूरी तरह बच नहीं पाती।
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रणनीतिक लक्ष्य: चीन चाहता है कि उसके जासूसी विमान और नई पीढ़ी के ड्रोन ऊपर से निगरानी कर रहे अमेरिकी और सहयोगी देशों के सैटेलाइट्स से भी गायब रह सकें।
तकनीक की विश्वसनीयता और भविष्य
हालांकि यह तकनीक अभी लैब टेस्ट तक ही सीमित है, लेकिन इसमें बड़ी क्षमता है। वास्तविक युद्ध की परिस्थितियों में जेट विमानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे तेज़ गति, अत्यधिक कंपन, और तापमान का दबाव। इसके अलावा, यह तकनीक अभी कुछ खास रडार फ्रीक्वेंसी पर ही बेहतर काम करती है।
फिर भी, यह तकनीक एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है: चीन अब पारंपरिक विज्ञान के बजाय, प्राकृतिक बनावट, पुराने तरीकों और सस्ते मैटेरियल से उच्च-तकनीकी समाधान खोजने का रास्ता अपना रहा है। यह सस्ती और प्रभावी स्टील्थ कोटिंग भविष्य में सैन्य विमानन के नियमों को बदल सकती है।