लखनऊ न्यूज डेस्क: बहुजन समाज पार्टी इन दिनों जोश और नई ऊर्जा से भर गई है। 9 अक्टूबर को लखनऊ में बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर होने वाली रैली के लिए पार्टी नेता और कार्यकर्ता दिन-रात जुटे हुए हैं। इस रैली को लेकर बसपा फिर से अपने पुराने सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को अपनाने में लगी है, जहां हर जाति और धर्म के लोगों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है।
पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह रैली 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी का संकेत है। उन्हें उम्मीद है कि बसपा एक बार फिर 2007 जैसी सफलता हासिल करेगी, जब मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं और जिले की नौ में से चार सीटों पर बसपा ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी वही फार्मूला दोहराने के लिए कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को आमंत्रित कर रहे हैं।
रैली में शामिल होने के लिए जिला इकाई ने 20,000 लोगों को लखनऊ ले जाने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए एक हजार छोटे वाहन, 150 बसें और सौ से अधिक बाइक की व्यवस्था की गई है। कई लोग अपने निजी वाहनों से भी रवाना होंगे। पार्टी नेताओं का कहना है कि जाति और मजहब की दीवारों को तोड़कर हर वर्ग से लोगों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है।
वहीं भाजपा और सपा दोनों दल इस रैली को लेकर सतर्क हो गए हैं। बताया जा रहा है कि दोनों पार्टियों ने अपने स्तर पर रैली में शामिल होने वालों पर नजर रखने के लिए खुफिया तंत्र सक्रिय कर दिया है। बसपा नेताओं का दावा है कि मायावती की सरकार ने जिस सुशासन का उदाहरण पेश किया था, वही इस रैली के माध्यम से जनता के बीच फिर से याद दिलाया जाएगा।