आज के डिजिटल दौर में Swiggy और Zomato हमारी जीवनशैली का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। महज एक क्लिक पर पसंदीदा खाना घर पहुंचना जितना सुविधाजनक है, इसके पीछे का अर्थशास्त्र (Economics) उतना ही पेचीदा है। दिसंबर 2025 तक ये कंपनियां न केवल फूड डिलीवरी बल्कि 'क्विक कॉमर्स' के क्षेत्र में भी बड़े खिलाड़ी बन चुकी हैं। आइए समझते हैं कि इन एप्स का बिजनेस मॉडल कैसे काम करता है और इसमें रेस्टोरेंट व डिलीवरी पार्टनर्स की क्या भूमिका है।
प्लेटफॉर्म की कमाई का मुख्य जरिया: भारी कमीशन
Swiggy और Zomato की आय का सबसे बड़ा स्रोत रेस्टोरेंट से लिया जाने वाला कमीशन है। आमतौर पर ये कंपनियां कुल ऑर्डर वैल्यू का 15% से 25% तक हिस्सा अपने पास रखती हैं।
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कमीशन का गणित: यदि आपने किसी रेस्टोरेंट से 1,000 रुपये का खाना ऑर्डर किया है, तो रेस्टोरेंट को उसमें से केवल 750 से 800 रुपये ही मिलते हैं। शेष राशि प्लेटफॉर्म की झोली में जाती है।
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प्रभाव: इस भारी कटौती के कारण रेस्टोरेंट मालिक अक्सर एप पर खाने की कीमतें असली मेन्यू से 10% से 20% तक बढ़ाकर रखते हैं, ताकि वे अपना मुनाफा बचा सकें। अंततः इस कमीशन का बोझ ग्राहक की जेब पर ही पड़ता है।
डिलीवरी पार्टनर्स: कड़ी मेहनत और सीमित आय
डिलीवरी वर्कर्स इस पूरे ईकोसिस्टम की रीढ़ हैं, लेकिन उनकी कमाई कई चुनौतियों से भरी होती है।
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प्रति ऑर्डर भुगतान: एक डिलीवरी पार्टनर को प्रति ऑर्डर औसतन 20 से 40 रुपये मिलते हैं। यह राशि दूरी, समय और मौसम की स्थिति के आधार पर थोड़ी घट-बढ़ सकती है।
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इंसेंटिव और बोनस: पीक आवर्स (जैसे डिनर टाइम) या भारी बारिश के दौरान ऑर्डर पूरा करने पर उन्हें अतिरिक्त बोनस मिलता है।
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छिपे हुए खर्च: डिलीवरी वर्कर को मिलने वाली राशि में से ही पेट्रोल, वाहन का रखरखाव (Maintenance) और मोबाइल डेटा का खर्च निकालना होता है। इन खर्चों को घटाने के बाद उनकी वास्तविक बचत काफी कम रह जाती है।
बहुआयामी राजस्व मॉडल (Revenue Streams)
कमीशन के अलावा, ये कंपनियां कई अन्य तरीकों से भी पैसा कमाती हैं:
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कस्टमर फीस: डिलीवरी फीस, प्लेटफॉर्म फीस और 'रेन सर्ज' (बारिश के दौरान अतिरिक्त शुल्क) सीधे ग्राहकों से वसूला जाता है।
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विज्ञापन और प्रचार शुल्क: रेस्टोरेंट अपनी विजिबिलिटी बढ़ाने के लिए इन एप्स को 'स्पॉन्सर्ड लिस्टिंग' के लिए पैसे देते हैं, ताकि वे सर्च रिजल्ट में सबसे ऊपर दिखें।
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सब्सक्रिप्शन मॉडल: Swiggy One या Zomato Gold जैसे प्रोग्राम के जरिए कंपनियां ग्राहकों से सालाना या मंथली फीस लेकर एक निश्चित रेवेन्यू सुनिश्चित करती हैं।
[Image describing the breakdown of a ₹500 food order: Platform Commission, Delivery Partner Pay, and Restaurant Share]
तकनीकी और लॉजिस्टिक निवेश
प्लेटफॉर्म द्वारा वसूले गए इस पैसे का उपयोग वे अपनी उन्नत AI तकनीक, मार्केटिंग, ब्रांडिंग और विशाल लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को बनाए रखने के लिए करते हैं। 2025 तक इन कंपनियों ने डिलीवरी के समय को और कम करने के लिए 'डार्क स्टोर्स' और प्रेडिक्टिव एल्गोरिदम में भारी निवेश किया है।
निष्कर्ष
Swiggy और Zomato जैसी कंपनियों ने बाजार में अपनी एक मजबूत पकड़ बना ली है, लेकिन यह बिजनेस मॉडल रेस्टोरेंट के मुनाफे और डिलीवरी वर्कर्स के संघर्ष पर टिका है। जहाँ ग्राहकों को सुविधा मिल रही है, वहीं रेस्टोरेंट्स के लिए यह कमीशन एक मजबूरी बन गया है। भविष्य में इन प्लेटफॉर्म्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती कमीशन दरों और डिलीवरी पार्टनर्स के कल्याण के बीच संतुलन बनाना होगा।