भारतीय कॉरपोरेट जगत और वहां काम करने वाले लाखों कर्मचारियों के लिए मर्सर का हालिया 'टोटल रिम्यूनरेशन सर्वे' (Total Remuneration Survey) एक सकारात्मक और स्थिर भविष्य का संकेत दे रहा है। सर्वे के अनुसार, साल 2026 में भारतीय कर्मचारियों की सैलरी में औसतन 9% तक की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। यह आंकड़ा 2025 के इंक्रीमेंट के लगभग बराबर है, जो दर्शाता है कि भारतीय बाजार में सैलरी ग्रोथ का ट्रेंड अब एक स्थिर और परिपक्व दौर में पहुंच गया है।
सेक्टर्स के आधार पर सैलरी में वृद्धि
सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि सभी क्षेत्रों में बढ़ोतरी एक समान नहीं होगी। कुछ पारंपरिक और उभरते हुए सेक्टर्स ने अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है:
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मैन्युफैक्चरिंग और इंजीनियरिंग: बुनियादी ढांचे पर सरकार के फोकस और औद्योगिक विस्तार के कारण इस सेक्टर में सबसे ज्यादा 9.5% की बढ़ोतरी का अनुमान है।
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ऑटोमोबाइल सेक्टर: नई तकनीकों और इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की बढ़ती मांग के बीच इस सेक्टर में भी 9.5% इंक्रीमेंट की उम्मीद है।
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ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC): वैश्विक कंपनियों के भारतीय केंद्रों (GCC) में औसतन 9.2% तक की वृद्धि देखी जा सकती है।
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अन्य सेक्टर्स: टेक्नोलॉजी और सेवा क्षेत्रों में भी वृद्धि दर 8.5% से 9% के बीच रहने की संभावना है।
एट्रिशन रेट में गिरावट: स्थिरता का प्रतीक
पिछले कुछ वर्षों में 'ग्रेट रेजिग्नेशन' जैसे ट्रेंड्स के बाद अब भारतीय टैलेंट मार्केट में ठहराव नजर आ रहा है। कर्मचारियों द्वारा स्वेच्छा से नौकरी छोड़ने की दर (Voluntary Attrition) में भारी गिरावट आई है। 2023 में जहाँ यह दर 13.1% थी, वहीं 2025 की पहली छमाही तक यह गिरकर मात्र 6.4% रह गई है।
यह गिरावट दर्शाती है कि कर्मचारी अब अनिश्चित आर्थिक माहौल में स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके साथ ही, जबरन छंटनी (Involuntary Attrition) की दर भी 1.6% के निचले स्तर पर बनी हुई है, जो नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच एक बेहतर तालमेल का संकेत है।
रणनीतियों में बदलाव: शॉर्ट-टर्म इंसेंटिव पर जोर
कंपनियां अब अपने कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए पारंपरिक तरीकों के बजाय 'रिवार्ड स्ट्रक्चर' में बदलाव कर रही हैं। सर्वे के मुताबिक:
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कंपनियां अब लॉन्ग-टर्म बेनिफिट्स के बजाय शॉर्ट-टर्म कैश इंसेंटिव को ज्यादा तरजीह दे रही हैं।
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अच्छे प्रदर्शन करने वाले (High Performers) कर्मचारियों को बाजार के औसत से कहीं अधिक वेतन वृद्धि और बोनस दिया जा रहा है।
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भविष्य की अनिश्चितताओं को देखते हुए कंपनियां अपने फिक्स्ड कॉस्ट (Fixed Cost) को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही हैं।
भर्ती (Hiring) को लेकर सावधानी
भले ही सैलरी बढ़ रही है, लेकिन नई भर्तियों को लेकर कंपनियां अभी 'वेट एंड वॉच' (Wait and Watch) की स्थिति में हैं। 2024 में जहाँ 43% कंपनियां नए पद सृजित करने की योजना बना रही थीं, वहीं 2026 के लिए यह घटकर 32% रह गई है। लगभग 31% कंपनियां अभी इस दुविधा में हैं कि वे नई नियुक्तियां करें या नहीं।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, 2026 का साल भारतीय कामकाजी वर्ग के लिए 'संतुलित प्रगति' का साल साबित हो सकता है। जहाँ एक तरफ 9% की वेतन वृद्धि महंगाई और जीवन स्तर के बीच संतुलन बनाए रखेगी, वहीं एट्रिशन रेट में कमी कार्यस्थल पर शांति और स्थिरता लाएगी। कंपनियों का पूरा ध्यान अब 'क्वांटिटी' (संख्या) के बजाय 'क्वालिटी' (प्रतिभा) को सहेजने पर है।