यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने स्पष्ट किया है कि वे देश के पूर्वी औद्योगिक केंद्र (डोनबास क्षेत्र) से अपनी सेना पीछे हटाने को तैयार हैं। हालांकि, इसके लिए उन्होंने एक कड़ी शर्त रखी है: रूस को भी उसी अनुपात में पीछे हटना होगा। इस खाली हुए क्षेत्र को एक 'वि-सैन्यीकृत क्षेत्र' घोषित किया जाएगा, जिसकी कमान अंतरराष्ट्रीय शांति सेना के हाथों में होगी।
1. अमेरिका की '20 सूत्री योजना' और मुक्त आर्थिक क्षेत्र
जेलेंस्की ने खुलासा किया कि फ्लोरिडा में हुई हालिया बैठकों के बाद अमेरिका ने एक 20 सूत्री शांति योजना तैयार की है। इस योजना का एक मुख्य हिस्सा पूर्वी यूक्रेन में एक 'मुक्त आर्थिक क्षेत्र' बनाना है।
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उद्देश्य: इस क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर युद्ध के घावों को भरना।
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अंतरराष्ट्रीय निगरानी: चूंकि रूस पर भरोसा करना मुश्किल है, इसलिए जेलेंस्की ने जोर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय बलों की मौजूदगी अनिवार्य है ताकि कोई भी पक्ष गुप्त रूप से घुसपैठ न कर सके।
2. जापोरिजिया परमाणु संयंत्र: संयुक्त प्रबंधन का मॉडल
यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जापोरिजिया (ZNPP), पर नियंत्रण को लेकर अभी भी पेंच फंसा हुआ है। वर्तमान में यह रूस के कब्जे में है। अमेरिका ने एक त्रिपक्षीय संघ (Consortium) बनाने का प्रस्ताव दिया है जिसमें यूक्रेन और रूस की बराबर की हिस्सेदारी हो। हालांकि, जेलेंस्की ने स्वीकार किया कि इस मुद्दे पर अभी तक पूर्ण सहमति नहीं बन पाई है, क्योंकि यह सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा है।
3. प्रमुख अड़चनें और क्षेत्रीय विवाद
भले ही यूक्रेन और अमेरिका के बीच अधिकांश बिंदुओं पर सहमति बन गई हो, लेकिन डोनेट्स्क और लुहांस्क (डोनबास) के क्षेत्रीय विवाद अब भी सबसे कठिन चुनौती हैं।
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सैनिकों की वापसी: सेना को कितनी दूर तक पीछे ले जाना है, इस पर लंबी चर्चा की आवश्यकता है।
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विश्वास की कमी: जेलेंस्की ने स्पष्ट कहा, "रूसियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, उन्होंने बार-बार वादे तोड़े हैं।" इसीलिए वे वर्तमान संपर्क रेखा को एक वास्तविक सुरक्षित क्षेत्र में बदलना चाहते हैं।
4. रूस के जवाब का इंतजार
शांति वार्ता के केंद्र में अब क्रेमलिन (रूस) है। जेलेंस्की ने संकेत दिया है कि रूस से इस 20 सूत्री प्रस्ताव पर जवाब आने की उम्मीद है। यदि पुतिन इस वि-सैन्यीकरण और अंतरराष्ट्रीय निगरानी के विचार पर सहमत होते हैं, तो यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हो सकती है।