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‘1971 की शर्मनाक हार न भूले पाकिस्तान’, जनरल मुनीर पर बलोच नेता का पलटवार

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Posted On:Tuesday, May 6, 2025

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। इस हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का हाथ माना जा रहा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की शुरुआती रिपोर्ट्स में संकेत मिला है कि इस हमले को पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकियों ने अंजाम दिया। ऐसे में भारत-पाक के राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर से तनाव गहराने लगा है और दोनों तरफ से युद्ध जैसे बयान सामने आने लगे हैं।

जनरल आसिम मुनीर की धमकी और बलूचिस्तान की प्रतिक्रिया

इन घटनाओं के बीच, पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर का एक बयान विवादों में आ गया है। इस्लामाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि "बलूचिस्तान पाकिस्तान के माथे का झूमर है और आने वाली दस नस्लें भी इसे पाकिस्तान से अलग नहीं कर पाएंगी।" उनके इस बयान को बलोच जनता के लिए एक छिपी हुई चेतावनी के रूप में देखा गया, जिसे बलूच नेताओं ने गंभीरता से लिया है।

बलूचिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान से स्वतंत्रता की मांग करता आया है। वहां की जनता और राजनीतिक नेता पाकिस्तान की सेना और सरकार पर मानवाधिकार हनन और दमन का आरोप लगाते रहे हैं। जनरल मुनीर के इस बयान पर बलूचिस्तान के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रमुख नेता अख्तर मेंगल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

अख्तर मेंगल का करारा पलटवार

अख्तर मेंगल ने अपने बयान में पाकिस्तान की सेना को 1971 की ऐतिहासिक हार की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि, "पाक सेना को 1971 में भारत के हाथों मिली शर्मनाक हार और 90,000 सैनिकों के आत्मसमर्पण को नहीं भूलना चाहिए।" उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, "इन सैनिकों ने सिर्फ हथियार नहीं डाले थे, बल्कि उनकी पतलूने आज भी वहीं टंगी हुई हैं।" यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की सेना पर व्यंग्य था, जो अपनी पुरानी हार को भूलकर आज भी आंतरिक क्षेत्रों में दमन कर रही है।

मेंगल ने कहा कि बलोच लोग पिछले 75 वर्षों से पाकिस्तानी सेना और हुकूमत के अत्याचारों को झेलते आ रहे हैं, लेकिन अब वे किसी भी प्रकार की धमकियों से डरने वाले नहीं हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि "हम हर जुल्म को याद रखते हैं और उसका हिसाब करना जानते हैं।"

भारत-पाक तनाव और युद्ध जैसे बयान

पहलगेाम हमले के बाद भारत में भी कई राजनीतिक और रक्षा विश्लेषकों ने पाकिस्तान को सख्त चेतावनी देने की मांग की है। कुछ नेताओं ने यहां तक कहा है कि यदि पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देना बंद नहीं करता तो भारत को निर्णायक कदम उठाना चाहिए। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक, भारत में यह मांग उठ रही है कि पाकिस्तान को उसके कृत्यों का करारा जवाब दिया जाए।

पाकिस्तान की ओर से लगातार ऐसे बयान आ रहे हैं जो तनाव को और बढ़ा रहे हैं। भारत की सीमाओं पर सक्रिय आतंकी संगठनों की मदद के आरोपों के बीच पाकिस्तान के अंदरूनी हालात भी बिगड़ते जा रहे हैं। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और सिंध प्रांत में असंतोष और विद्रोह की स्थिति बनी हुई है।

बलूचिस्तान की आजादी की मांग और संघर्ष

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। इसके बावजूद यहां की जनता गरीबी, बेरोजगारी और मानवाधिकार हनन का शिकार है। बलोच नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान की सेना यहां के संसाधनों का शोषण कर रही है और विरोध करने वालों को गायब कर दिया जाता है या जेलों में डाल दिया जाता है।

बलोच आंदोलन कई दशकों से पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ चल रहा है। समय-समय पर यहां से स्वतंत्रता की मांग उठती रही है और पाकिस्तान इन आंदोलनों को दबाने के लिए सैन्य कार्रवाई करता रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बलूच नेताओं ने पाकिस्तान की नीतियों की आलोचना की है और भारत समेत अन्य देशों से समर्थन मांगा है।

निष्कर्ष

जम्मू-कश्मीर में हुए हालिया हमले ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है। पाकिस्तान की ओर से जनरल आसिम मुनीर जैसे वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दिए गए बयान सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि उसके अपने देश के भीतर भी असंतोष पैदा कर रहे हैं। बलूचिस्तान की जनता और नेताओं की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि वहां की स्थिति कितनी विस्फोटक होती जा रही है।

भारत के लिए यह समय रणनीतिक और कूटनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। एक ओर उसे अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है, वहीं दूसरी ओर उसे पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों का कड़ा जवाब देना होगा। साथ ही, बलूचिस्तान जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बेनकाब करने की भी आवश्यकता है।


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