कपकपी मूवी रिव्यु : डर और कॉमेडी का एक ताज़ा धमाका
                                                
                                                
                                                
                                                    
                                                
                                                अगर आप इस वीकेंड कुछ हल्का-फुल्का, मजेदार और तनाव मिटाने वाला देखना चाहते हैं, तो कपकपी आपके लिए परफेक्ट है।
                                             
											
                                                
                                                निर्देशक: संगीथ सिवन
लेखक: कुमार प्रियदर्शी और सौरभ आनंद
कलाकार: तुषार कपूर, श्रेयस तलपड़े, सिद्धि इडनानी, जय ठक्कर, सोनिया राठी, अभिषेक कुमार, वरुण पांडेय, धीरेंद्र तिवारी, मनमीत कौर
समय अवधि: 138 मिनट
 
पूरे हफ्ते की थकावट के बाद हर इंसान चाहता है कि वीकेंड पर कुछ एंटरटेनिंग देखा जाए। कुछ फिल्में ऐसी होती है जो किसी गंभीर मुद्दे पर बातकरती है , कुछ फिल्में ऐसी होती है जहाँ सच्ची घटनाओं को ऑडियंस के सामने उजागर किया जाता है। लेकिन फिर कुछ ऐसी फिल्में भी होती हैजिनमे न कोई लॉजिक होता है न दिमाग लगाने की जरुरत। यह सिर्फ और सिर्फ आपके एंटरटेनमेंट के लिए बनायीं जाती है। ऐसी ही फिल्म इसवीकेंड आपके नजदीकी सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई है जिसका नाम है कपकपी। यह फिल्म आपको हसाएंगी और डराएगी लेकिन डराते हुए भी सिर्फ हसायेगी ही।
कहानी है छः दोस्तों की जो एक साथ एक किराए के घर में रहते हैं — बेरोज़गारी, उलझन और मस्ती से भरी उनकी ज़िंदगी में कोई बड़ा मकसद नहींहै।पूरा दिन कुछ  न करने की उन्हें आदत होती है।  एक दिन इनमें से एक, मनु (श्रेयस तलपड़े), एक कैरम बोर्ड को ओइजा बोर्ड समझकर मस्ती में भूतबुलाने की कोशिश करता है।
 
शुरू में सब हंसी-मज़ाक लगता है, लेकिन जब एक असली भूत 'अनामिका' की एंट्री होती है, तब चीज़ें गड़बड़ होने लगती हैं। धीरे-धीरे मस्ती एकअजीब खेल बन जाती है — जिसमें डर भी है और ढेर सारी हंसी भी।इस माहौल में आता है कबीर (तुषार कपूर), जो उनके घर बस शरण लेने आता है  लेकिन भूतिया हलचल में वह भी फंस जाता है।
 
फिल्म में कॉमेडी का जबरदस्त तड़का है। श्रेयस तलपड़े  की कॉमिक टाइमिंग कमाल की है। हर सीन में उनके एक्सप्रेशन और डायलॉग दिल जीतलेते हैं।वहीं , तुषार कपूर ने भी पुराने अंदाज़ में लोगों को हंसाने का कोई मौका नहीं छोड़ा।यह दोनों एक साथ मिलकर धमाल मचाते हैं। इनके साथसाथ बाकी की कास्ट जैसे चाय बेचने वाला नानकू, पढ़ा-लिखा लेकिन बेरोज़गार निरूप हर  किरदार को मस्ती के साथ निभाता है और हर कोईआपको हसांता भी है। ऊपर रहने वाली लड़कियां  जिसका रोल सिद्धि इडनानी और सोनिया राठी ने निभाया है  और उन दोनों ने फिल्म में अपनीएक्टिंग से जान डाली है।
 
फिल्म के संवाद मजेदार हैं, लेकिन ओवर एक्टिंग या जबरदस्ती की कॉमेडी कहीं नहीं दिखती।इसका श्रेय जाता है कुमार प्रियदर्शी और सौरभ आनंदको।  जोक्स समय पर आते हैं और असर छोड़ते हैं।कई डायलाग तो इतने अच्छे है कि आप उन्हें बार बार सुनना चाहते हैं। डर का स्तर हल्का है — मतलब भूत है, लेकिन वो भी मज़ेदार है। आपको कूदने की ज़रूरत नहीं, बस मुस्कराते हुए डरने का मौका मिलेगा।
 
संगीथ सिवन ने फिल्म को बहुत सहज तरीके से पेश किया है। न कहानी भारी लगती है और न ही जबरदस्ती लंबी। हर चीज़ अपने टाइम पर होती है।यह उनकी आखिरी फिल्म है और उनको हमेशा उनकी इस आखिरी फिल्म के लिए याद रखा जाएगा।
 
अगर आप इस वीकेंड कुछ हल्का-फुल्का, मजेदार और तनाव मिटाने वाला देखना चाहते हैं, तो कपकपी आपके लिए परफेक्ट है।
 
दिमाग घर छोड़िए, पॉपकॉर्न उठाइए और हॉल में घुस जाइए — मस्ती गारंटी है!