बांग्लादेश में निरंतर बढ़ती अराजकता और हिंसा ने वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों के जीवन को गहरे संकट में डाल दिया है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदू समाज, भय और असुरक्षा के माहौल में जीने को मजबूर है। बीते सप्ताह मैमनसिंह जिले के भालुका क्षेत्र में घटी एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों की ओर खींचा है। दीपू चंद्र दास नाम के एक हिंदू युवक को सरेआम भीड़ द्वारा बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला गया और इसके बाद मरणोपरांत उसके शव को पेड़ से लटकाकर जला दिया गया। इस अमानवीय कृत्य ने न सिर्फ बांग्लादेश, बल्कि पड़ोसी देशों में भी आक्रोश पैदा कर दिया है।
बताया जा रहा है कि यह ताजा हिंसा ढाका में ‘इंकलाब मंच’ के नेता और शेख हसीना गुट के कट्टर विरोधी शरीफ उस्मान हादी की अज्ञात हमलावरों द्वारा गोली मारकर हत्या किए जाने के बाद भड़की है। हादी की हत्या के बाद से देश के कई हिस्सों में हालात बेकाबू हो गए हैं और हमेशा की तरह इस हिंसा की सबसे बड़ी कीमत हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को चुकानी पड़ रही है। हिंदू बस्तियों में लूटपाट, आगजनी, तोड़फोड़ और सामूहिक हमलों की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा कोई नई बात नहीं है। देश की आज़ादी से लेकर अब तक अल्पसंख्यक हिंदू समाज को भेदभाव, उत्पीड़न और अधिकारों के हनन का सामना करना पड़ा है। समय-समय पर सत्ता परिवर्तन के साथ हिंसा की तीव्रता बढ़ती रही है, लेकिन स्थिति में कभी ठोस सुधार नहीं हुआ। सबसे ज्यादा पीड़ित वहां की हिंदू महिलाएं रही हैं, जिन्हें धर्म के आधार पर दशकों से अमानवीय अत्याचार झेलने पड़ रहे हैं।
हाल ही में एक मानवाधिकार कार्यकर्ता द्वारा सामने लाए गए आंकड़े स्थिति की भयावहता को उजागर करते हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्थ किए जाने के बाद वर्ष 2025 के पहले तीन महीनों में महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 342 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें अधिकांश पीड़ितों की उम्र 18 वर्ष से कम बताई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि भय, सामाजिक दबाव और प्रशासन पर अविश्वास के कारण कई पीड़िताएं सामने आने से कतराती हैं। बांग्लादेश की पुलिस और न्याय व्यवस्था पर लोगों का भरोसा लगातार कमजोर होता जा रहा है।
मैमनसिंह में हुए जघन्य हत्याकांड पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आधिकारिक प्रेस वार्ता में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को “बेहद चिंताजनक” बताया। उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि सामने आए वीडियो फुटेज से संकेत मिलता है कि दीपू चंद्र दास को मारे जाने से पहले पुलिस के पास देखा गया था। इससे यह गंभीर सवाल खड़ा होता है कि कहीं पुलिस ने उसे कट्टरपंथियों के हवाले तो नहीं कर दिया। यदि ऐसा है, तो यह राज्य प्रायोजित उदासीनता या मिलीभगत का गंभीर मामला बनता है।
हादी उस्मान की हत्या के बाद से भारत से जुड़े कई मिशनों के खिलाफ भी हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले हैं। सड़कों पर भारत विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हिंसा सिर्फ आंतरिक अस्थिरता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल बाहरी देशों के खिलाफ भावनाएं भड़काने के लिए भी किया जा रहा है। बांग्लादेश में मौजूदा हालात मानवाधिकारों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं।
दुनिया के कई देश इस गंभीर संकट को देख और समझ रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अब तक कोई ठोस कदम उठाने में विफल रहे हैं। उन पर आरोप है कि वे इन अमानवीय घटनाओं के मूक दर्शक बने हुए हैं और वास्तविक कार्रवाई के बजाय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सिर्फ एक औपचारिक वादा बनकर रह गई है, या कभी जमीनी स्तर पर भी इसके लिए गंभीर प्रयास किए जाएंगे।