बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के मुखिया, मोहम्मद यूनुस, अपने एक बड़े और विवादास्पद फैसले के कारण गंभीर राजनीतिक संकट में घिरते नज़र आ रहे हैं। यह विवाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना से जुड़ा नहीं है, बल्कि देश के महत्वपूर्ण चट्टोग्राम पोर्ट (Chattogram Port) के लालदिया कंटेनर टर्मिनल (Laldia Container Terminal) और ढाका के पास स्थित पांगाओन नॉव-टर्मिनल (Pangaon Nav-Terminal) को विदेशी कंपनियों को लीज़ पर देने के मसले पर केंद्रित है।
विरोध की आग: चट्टोग्राम से ढाका तक
जनता इसफैसले से इस कदर नाराज है कि चट्टोग्राम से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन अब राजधानी ढाका और देश के अन्य हिस्सों में भी जंगल की आग की तरह फैल चुका है।
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सड़कों पर प्रदर्शन: लगातार रैलियाँ, प्रदर्शन और विरोध-जुलूस आयोजित किए जा रहे हैं।
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मजदूरों का एकजुट होना: देश की सभी प्रमुख मजदूर यूनियनें एकसाथ आकर "पोर्ट बचाओ आंदोलन" चला रही हैं।
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विस्तारित राजनीतिक समर्थन: पहले जहाँ मुख्य रूप से वामपंथी दल इस मुद्दे पर आवाज़ उठा रहे थे, वहीं अब दक्षिणपंथी संगठनों ने भी खुलकर मैदान में उतरने का फैसला कर लिया है।
परिणामस्वरूप, अगले हफ्ते हड़ताल और सड़क जाम जैसी कड़ी कार्यवाहियों का एलान हो सकता है। कुछ संगठनों ने तो यहाँ तक कि मुख्य सलाहकार (मोहम्मद यूनुस) के आवास को घेरने की योजना भी बना ली है।
विवाद की जड़: विदेशी कंपनियों से गुप्त करार
यह विवाद कुछ ही दिन पहले शुरू हुआ जब अंतरिम सरकार ने दो प्रमुख टर्मिनलों के संचालन के लिए विदेशी कंपनियों के साथ दीर्घकालिक करार किए:
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लालदिया चार कंटेनर टर्मिनल: इसे डेनमार्क की कंपनी APM टर्मिनल्स को सौंपा गया।
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पांगाओन टर्मिनल: इसे स्विट्ज़रलैंड की कंपनी Medlog SA को संचालन के लिए लंबे समय के लिए सौंपा गया।
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि सरकार तेजी से और भी कई टर्मिनलों को विदेशी कंपनियों के हाथ में देने की प्रक्रिया आगे बढ़ा रही है। चट्टोग्राम पोर्ट के सबसे मुनाफेदार टर्मिनलों में से एक, न्यूमूरिंग कंटेनर टर्मिनल (NCT) को भी UAE की DP वर्ल्ड को सौंपने की तैयारी हो रही है।
जनता और राजनीतिक दलों की नाराज़गी के कारण
स्थानीय लोगों, मजदूरों और विपक्षी नेताओं की नाराजगी के पीछे कई गंभीर तर्क हैं:
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अपारदर्शी और गुप्त करार: विरोध करने वालों का मुख्य आरोप यह है कि यह समझौता पूरे 33 साल के लिए है और इसे गुप्त तरीके से किया गया है।
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अर्थव्यवस्था और संप्रभुता पर खतरा: आलोचकों का मानना है कि बंदरगाह का नियंत्रण विदेशी कंपनियों के पास जाने से देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। इसके अलावा, सात में से पाँच बड़े टर्मिनल विदेशी कंपनियों को सौंपना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक है।
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अधिकार पर सवाल: कई राजनीतिक नेताओं का कहना है कि कुछ महीनों की सीमित अवधि के लिए बनी अंतरिम सरकार को इतने बड़े और दीर्घकालिक समझौते करने का कोई हक नहीं है।
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पारदर्शिता की कमी: समझौते की शर्तें सार्वजनिक नहीं की गई हैं, और पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी रही है। यह सीधा आरोप है कि इस फैसले से देश की संप्रभुता और सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।
मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के लिए यह फैसला अब तक की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है, जिसने देशव्यापी विरोध को जन्म दिया है और उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।