मुंबई, 20 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन) कल्पना कीजिए, जब आप पूरी तरह अंधेरे में हों और फिर भी बिना किसी परेशानी के रास्ता खोज लें। यही खासियत है कई चमगादड़ प्रजातियों की, जो अपनी अनोखी क्षमता ‘इकोलोकेशन’ यानी जैविक सोनार की मदद से देख सकती हैं।
इकोलोकेशन — आवाज़ से देखने की कला
अधिकांश माइक्रोबैट्स अपने गले से 20–200kHz की हाई-फ्रीक्वेंसी अल्ट्रासोनिक आवाजें निकालती हैं, जिन्हें मुंह या नाक के ज़रिए बाहर फेंका जाता है। ये ध्वनि तरंगें जब वस्तुओं से टकराती हैं, तो उनकी गूंज लौटती है, जिसे चमगादड़ों का दिमाग तुरंत डिकोड करता है। इसी ग़ूंज से वे अपने आसपास की दुनिया का नक्शा बनाती हैं — अंधेरे में किसी वस्तु की दूरी, आकार, बनावट, गति और यहां तक कि उसकी सतह को भी महसूस कर लेती हैं।
अद्भुत शिकार कौशल
‘इकोलोकेशन’ की मदद से चमगादड़ न केवल रास्ते की बाधाओं को पहचानती हैं, बल्कि बेहद कुशलता से शिकार भी करती हैं। वे 40m/s की गति से उड़ सकती हैं और कभी-कभी बाल से भी पतली बिजली की तारों को भी महसूस कर लेती हैं। उनका कान इतनी बारीकी से डिजाइन हुआ है कि वे ध्वनि की मामूली विलंब को पहचान सके, जिससे उन्हें अपने वातावरण का विस्तृत ‘साउंड पिक्चर’ मिल जाता है — कई बार यह दृश्य शिकारी से भी तेज और सटीक होती है।
चमगादड़ों का ‘ध्वनि नक्शा’
कुछ चमगादड़ ‘एकॉस्टिक कॉग्निटिव मैप’ विकसित कर लेती हैं — यानी अपने इलाके का मानसिक ऑडियो नक्शा, जो सिर्फ इकोलोकेशन से बनता है। रिसर्च से यह पता चला है कि उदाहरण के लिए Kuhl’s पिपिस्ट्रेल चमगादड़ को कई किलोमीटर दूर फेंक दो, तब भी वे इसी ध्वनि नक्शे और दृष्टि की मदद से अपने घर तक वापस पहुंच जाती हैं।
निर्जीव शिकार भी पहचान लेते हैं
कुछ विशेष चमगादड़, जैसे Micronycteris microtis, पत्तियों पर बैठे हुए और बिना हिले शिकार, जैसे कीड़े, को भी सिर्फ इकोलोकेशन द्वारा पहचान कर पकड़ लेते हैं। वे छोटे-छोटे अल्ट्रासोनिक साउंड से आसपास स्कैन करके बेहद सटीक ‘ध्वनि चित्र’ बना लेते हैं।
पंखों से सोनार क्लिक — फल खाने वाले चमगादड़
एक दिलचस्प खोज में पता चला है कि कुछ फल खाने वाले चमगादड़ अपने आवाज़ के बजाय पंखों से सोनार क्लिक बनाते हैं। यह क्षमता थोड़ी कमज़ोर है, लेकिन उनसे उसका फायदा मिला — वे पूरी तरह अंधेरे में रास्ता खोज लेते हैं, हालांकि छोटे अवरोधों से टकरा सकते हैं।