मुंबई, 20 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। लोकसभा में बुधवार को गृहमंत्री अमित शाह ने तीन अहम बिल पेश किए, जिनके तहत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री को पांच साल या उससे अधिक की सजा वाले गंभीर अपराध में गिरफ्तारी या 30 दिन से ज्यादा हिरासत में रहने की स्थिति में पद छोड़ना अनिवार्य होगा। इन प्रस्तावित संशोधनों को लेकर सदन में जमकर हंगामा हुआ और विपक्षी दलों ने बिलों को वापस लेने की मांग करते हुए सरकार पर हमला बोला। कांग्रेस, एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और समाजवादी पार्टी ने इन विधेयकों को संविधान और न्याय के खिलाफ बताया। हंगामे के बीच विपक्षी सांसदों ने गृहमंत्री की ओर कागज के गोले भी फेंके। इस पर अमित शाह ने इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की बात कही। दरअसल, हाल के समय में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी और लंबी हिरासत के बावजूद उनके पद पर बने रहने को लेकर विवाद उठा था। इसी पृष्ठभूमि में सरकार यह स्पष्ट व्यवस्था करना चाहती है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी या हिरासत के दौरान संवैधानिक पद पर बने रहना संभव न हो।
पहला विधेयक "गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025" है। इसमें केंद्र शासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री या मंत्री की गिरफ्तारी या हिरासत की स्थिति में उन्हें हटाने का प्रावधान जोड़ा गया है। वर्तमान में 1963 के कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। दूसरा "130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025" है, जिसके जरिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन किया जाएगा। इसका मकसद प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य, राज्य सरकारों और दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गंभीर अपराधों में गिरफ्तार होने पर पद से हटाने का कानूनी ढांचा तैयार करना है। तीसरा "जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025" है। इसमें जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 54 में बदलाव किया जाएगा, ताकि गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार या 30 दिन से ज्यादा हिरासत में रहने वाले मुख्यमंत्री या मंत्री को उनके पद से हटाया जा सके।
इसी सत्र में केंद्र सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग पर बैन लगाने वाला बिल भी पेश किया। इसमें ऑनलाइन मनी गेमिंग, विज्ञापन या ऐसे खेलों को बढ़ावा देने पर तीन साल तक की जेल या एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान होगा। सरकार का कहना है कि ये सभी बिल लोकतंत्र और सुशासन की साख को मजबूत करेंगे। अभी तक केवल दोषी ठहराए गए जनप्रतिनिधियों को ही पद से हटाने की स्पष्ट व्यवस्था थी, लेकिन गिरफ्तारी या हिरासत के मामलों में कोई स्पष्ट कानूनी ढांचा नहीं था।