मुंबई, 25 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। वक्फ संशोधन कानून पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। केंद्र ने कहा, वक्फ मुसलमानों की कोई धार्मिक संस्था नहीं बल्कि वैधानिक निकाय है। केंद्र ने वक्फ (संशोधन) की वैधता के खिलाफ दायर सभी याचिकाएं खारिज करने की मांग की। केंद्र ने कहा, अदालतें वैधानिक प्रावधान पर रोक नहीं लगा सकती, संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर सकती हैं और निर्णय दे सकती हैं। संसद में बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है। विधायिका द्वारा लागू की गई विधायी व्यवस्था को बदलना स्वीकार नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल को 7 दिन के अंदर केंद्र से वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने को कहा था। इस मामले में अगली सुनवाई 5 मई को होगी।
केंद्र के हलफनामें में कहा गया है की, अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि संशोधन से धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया जाएगा। आप इस बिंदु पर विचार कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट किसी कानून की विधायी क्षमता और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर समीक्षा कर सकता है। इस संशोधन कानून से किसी भी व्यक्ति के वक्फ बनाने के धार्मिक अधिकार में कोई हस्तक्षेप नहीं होता। केवल प्रबंधन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इस कानून में बदलाव किया गया है। संसद द्वारा पारित कानून को संवैधानिक रूप से वैध माना जाता है, विशेष रूप से संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की सिफारिशों और संसद में व्यापक बहस के बाद बने हुए कानून को। संसद ने अपने अधिकार क्षेत्र में काम करते हुए यह सुनिश्चित किया कि वक्फ जैसे धार्मिक बंदोबस्त का प्रबंधन किया जाए और उसमें जताया गया भरोसा कायम रहे। निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण करने के लिए प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया है।
मुगल काल से पहले, आजादी से पहले और आजादी के बाद वक्फ की कुल जमीन 18 लाख 29 हजार163 एकड़ थी। चौंकाने वाली बात यह है कि 2013 के बाद वक्फ भूमि में 20,92,072.536 एकड़ की वृद्धि हुई। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 वैध विधायी शक्ति का वैध प्रयोग है।
तो वहीं, केंद्र ने हलफनामे साफ कर दिया कि वक्फ बॉडीज में गैर मुस्लिमों का बहुमत नहीं होगा। हलफनामे में सेंट्रल वक्फ कौंसिल (CWC) और स्टेट वक्फ बोर्ड (SWB) के गठन से जुड़े प्रावधानों का हवाला दिया गया है। सरकार ने कहा कि नए कानून के तहत CWC में कुल 22 सदस्य हैं, जिनमें अधिकतम चार गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। वहीं, SWB में कुल 11 सदस्य होंगे, जिनमें अधिकतम तीन गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। इसके अलावा अगर बॉडीज के पदेन अध्यक्ष यानी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री और संयुक्त सचिव भी मुस्लिम हैं तो केवल दो सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। इससे साफ है कि वक्फ बॉडीज में मुस्लिमों का ही बहुमत रहेगा। सरकार ने तर्क दिया कि वक्फ समय के साथ विकसित हुआ है और इसे केवल धार्मिक संस्थानों और पूजा स्थलों तक सीमित नहीं माना जा सकता है। पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए सरकार ने कहा कि वक्फ धार्मिक नहीं बल्कि सेक्युलर बॉडी है। इस वजह से वक्फ में गैर-मुस्लिमों से संबंधित मुद्दों पर भी निपटान की जरूरत हो सकती है। यह लाभार्थी, पीड़ित या प्रभावित पक्ष भी हो सकता है। यही वजह है कि वक्फ में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी यह करने के लिए यह प्रावधान किया गया है। यही कारण है कि वक्फ की अन्य धार्मिक संस्थानों से तुलना भी ठीक नहीं है।