राष्ट्रीय मिति पौष 30, शक संवत 1946, माघ कृष्ण, षष्ठी, सोमवार, विक्रम संवत् 2081। सौर माघ मास प्रविष्टे 07, रज्जब 19, हिजरी 1446 (मुस्लिम) तदनुसार अंग्रेजी तारीख 20 जनवरी सन् 2025 ई॰। सूर्य उत्तरायण, दक्षिण गोल, शिशिर ऋतुः। राहुकाल प्रातः 07 बजकर 30 मिनट से 09 बजे तक। षष्ठी तिथि प्रातः 09 बजकर 59 मिनट तक उपरांत सप्तमी तिथि का आरंभ।
🌕🌞 श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम् 🌞 🌕
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🚩🔱 धर्मो रक्षति रक्षितः🔱 🚩
🌅पंचांग- 20.01.2025🌅
युगाब्द - 5125
संवत्सर - कालयुक्त
विक्रम संवत् -2081
शाक:- 1946
ऋतु- शिशिर __ उत्तरायण
मास - माघ _ कृष्ण पक्ष
वार - सोमवार
तिथि _ षष्ठी 09:58:00
नक्षत्र हस्त 20:29:03
योग सुकर्मा 26:51:02
करण वणिज 09:58:00
करण विष्टि भद्र 23:17:55
चन्द्र राशि - कन्या
सूर्य राशि - मकर
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
✍️ भद्रा 09/59 से 23/19 तक
🍁 अग्रिम (आगामी पर्वोत्सव 🍁
🔅 षट्तिला एकादशी व्रत
. 25 जनवरी 2025
(शनिवार)
🔅 प्रदोष व्रत
. 27 जनवरी 2025
(सोमवार)
🔅 मौनी अमावस व्रत
. 29 जनवरी 2025
(बुधवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️
👊 तीन मुट्ठी चावल का फल 👊
जब भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा जी को तीनों लोको का स्वामी बना दिया तो सुदामा जी की संपत्ति देखकर यमराज से रहा न गया !
यम भगवान को नियम कानूनों का पाठ पढ़ाने के लिए अपने बहीखाते लेकर द्वारिका पहुंच गये !
भगवान से कहने लगे कि - अपराध क्षमा करें भगवन लेकिन सत्य तो ये है कि यमपुरी में शायद अब मेरी कोई आवश्यकता नही रह गयी है इसलिए में पृथ्वी लोक के प्राणियों के कर्मों का बहीखाता आपको सौंपने आया हूँ !
इस प्रकार यमराज ने सारे बहीखाते भगवान के सामने रख दिये भगवान मुस्कुराए बोले - यमराज जी आखिर ऐसी क्या बात है जो इतना चिंतित लग रहे हो ?
यमराज कहने लगे - प्रभु आपके क्षमा कर देने से अनेक पापी एक तो यमपुरी आते ही नही है वे सीधे ही आपके धाम को चले जाते हैं और फिर आपने अभी अभी सुदामा जी को तीनों लोक दान दे दिए हैं । सो अब हम कहाँ जाएं ?
यमराज भगवान से कहने लगे - प्रभु ! सुदामा जी के प्रारब्ध में तो जीवन भर दरिद्रता ही लिखी हुई थी लेकिन आपने उन्हें तीनों लोकों की संपत्ति देकर विधि के बनाये हुए विधान को ही बदलकर रख दिया है !
अब कर्मों की प्रधानता तो लगभग समाप्त ही हो गयी है !
भगवान बोले - यम तुमने कैसे जाना कि सुदामा के भाग्य में आजीवन दरिद्रता का योग है ?
यमराज ने अपना बही खाता खोला तो सुदामा जी के भाग्य वाले स्थान पर देखा तो चकित रह गए देखते हैं कि जहां श्रीक्षय’ सम्पत्ति का क्षय लिखा हुआ था !
वहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन्ही अक्षरों को उलटकर ‘उनके स्थान पर यक्षश्री’ लिख दिया अर्थात कुबेर की संपत्ति !
भगवान बोले - यमराज जी ! शायद आपकी जानकारी पूरी नही है क्या आप जानते हैं कि सुदामा ने मुझे अपना सर्वस्व अपर्ण कर दिया था ! मैने तो सुदामा के केवल उसी उपकार का प्रतिफल उसे दिया है !
यमराज बोले - भगवन ऐसी कौनसी सम्पत्ति सुदामा ने आपको अर्पण कर दी उसके पास तो कुछ भी नही !
भगवान बोले - सुदामा ने अपनी कुल पूंजी के रूप में बड़े ही प्रेम से मुझे चावल अर्पण किये थे जो मैंने और देवी लक्ष्मी ने बड़े प्रेम से खाये थे !
जो मुझे प्रेम से कुछ खिलाता है उसे सम्पूर्ण विश्व को भोजन कराने जितना पुण्य प्राप्त होता है.बस उसी का प्रतिफल सुदामा को मैंने दिया है।
जय जय श्री सीताराम
जय जय श्री ठाकुर जी की
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
पुजारी -श्री राधा गोपाल मंदिर, (जयपुर)