लखनऊ न्यूज डेस्क: यूपी की राजधानी लखनऊ के काकोरी स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में बाघ की गतिविधियां एक सीमित क्षेत्र तक ही सिमट कर रह गई हैं। बुधवार को संस्थान के बेल बाग वाले ब्लॉक और मीठे नगर जंगल में बाघ के ताजे पगचिह्न देखे गए, हालांकि बाघ शिकार की तलाश में जंगल में आ रहा है, लेकिन शिकार नहीं कर रहा है। इस पर वन विभाग ने स्थिति का गंभीरता से निरीक्षण किया और अधिकारियों ने जंगल में बाघ को सुरक्षित तरीके से रेस्क्यू करने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश दिए।
अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ. रेणु सिंह और बाराबंकी के डीएफओ आकाशदीप बधावन ने संस्थान का स्थलीय निरीक्षण किया। डीएफओ डॉ. सितांशु पांडेय ने जानकारी दी कि संस्थान के जोन एक में बेल बाग वाले इलाके में नया मचान बनाकर बाघ के रेस्क्यू की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि बाघ ने आखिरी बार 26 जनवरी को मचान के पास बंधे पड़े जानवर का शिकार किया था और उसके बाद से शिकार के कोई नए संकेत नहीं मिले हैं।
बाघ की स्थिति को लेकर वन विभाग ने रणनीति बनाई है, जिसमें जोन एक में बाघ के पगचिह्न मिलने के बाद जोन दो और तीन में हाथियों द्वारा कॉम्बिंग कराई जा रही है। डीएफओ के अनुसार, बाघ ने हाथियों के डर से संस्थान को अपना ठिकाना बना लिया है। इसके कारण बाघ के ठिकाना बदलने का मौका बढ़ गया है, जिससे रेस्क्यू को और सुरक्षित तरीके से अंजाम दिया जा सकता है।
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बाघ का शिकार नहीं करना चिंता का विषय है, क्योंकि इसके चलते बाघ की भूख बढ़ रही है। मचान के पास तीन अलग-अलग स्थानों पर जाल बिछाकर बाघ के शिकार का इंतजार किया जा रहा है। वन विभाग की पूरी कोशिश है कि बाघ को बिना किसी नुकसान के सुरक्षित रूप से रेस्क्यू किया जा सके।