लखनऊ न्यूज डेस्क: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अर्जुनगंज फायरिंग रेंज की जमीनों पर बाहरी लोगों के अवैध कब्जे के मामले में कड़ी नाराज़गी जताई है। अदालत ने कहा कि सेना के अधिकारियों के बार-बार चेतावनी देने के बावजूद राज्य सरकार और एलडीए के अफसरों ने आंख और कान बंद रखे, जिससे कब्जा बढ़ता गया। नतीजतन अब सेना वहां सिर्फ शॉर्ट रेंज फायरिंग कर सकती है, जबकि पहले लॉन्ग रेंज प्रैक्टिस भी होती थी। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई सितंबर के पहले हफ्ते में तय करते हुए एलडीए और आवास विकास परिषद को इलाके का सर्वे करने का निर्देश दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की बेंच ने ब्रिगेडियर तिरबनी प्रसाद द्वारा 2011 में दायर जनहित याचिका पर दिया। कोर्ट ने एलडीए और आवास विकास परिषद को इस याचिका में पक्षकार बनाने का आदेश भी दिया। सुनवाई के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि फायरिंग रेंज की अधिसूचना सितंबर 2025 में समाप्त हो रही है।
डिप्टी सॉलिसीटर जनरल एसबी पांडेय ने अदालत को बताया कि अधिसूचना की अवधि बढ़ाने का अनुरोध राज्य सरकार से किया जा चुका है। इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को तुरंत और ठोस निर्णय लेकर जानकारी देने का आदेश दिया।
कोर्ट ने यह भी चेताया कि इस मामले में जिम्मेदार लोगों की पहचान करके कार्रवाई की जाएगी। सेना ने स्पष्ट किया कि अर्जुनगंज फायरिंग रेंज उसके लिए आवश्यक है और वह इस समस्या का समाधान चाहती है।