लखनऊ न्यूज डेस्क: जब भी संत परंपरा की बात होती है, तो आमतौर पर पुरुष संतों के नाम ही सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन लखनऊ की महंत देव्यागिरि इस परंपरा को चुनौती देते हुए महिला संतों के लिए नई मिसाल पेश कर रही हैं। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की एकमात्र महिला महंत के रूप में, उन्होंने न केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, बल्कि समाज में महिलाओं की भागीदारी को भी बढ़ावा दिया। उनका व्यक्तित्व, ज्ञान और समाज सेवा के प्रति समर्पण उन्हें संत परंपरा में एक विशिष्ट स्थान दिलाता है।
महंत देव्यागिरि का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर था। औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने संन्यास मार्ग अपनाने का निर्णय लिया और गुरु परंपरा के अनुसार दीक्षा ली। उनका मानना है कि धर्म और भक्ति किसी लिंग से बंधे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति की आस्था और समर्पण पर निर्भर करते हैं। इसी विचारधारा के साथ उन्होंने संत समाज में प्रवेश किया और आज वे महिलाओं के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।
जूना अखाड़ा में आमतौर पर पुरुष संतों का वर्चस्व रहा है, लेकिन जब महंत देव्यागिरि को नागा संन्यासियों द्वारा महंत पद के लिए चुना गया, तो यह पूरे संत समाज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था। इस पद को ग्रहण करने के बाद उन्होंने समाज सेवा, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्यों को अपनी प्राथमिकता बनाया। धार्मिक अनुष्ठानों के नेतृत्व के साथ-साथ वे जरूरतमंदों की सहायता, निःशुल्क चिकित्सा शिविरों और अन्य सामाजिक अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
हालांकि इस मुकाम तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं था। संत समाज में महिलाओं की भागीदारी को लेकर कई सवाल उठाए गए, विरोध भी हुआ, लेकिन अपनी तपस्या और समर्पण से उन्होंने हर चुनौती का सामना किया। आज महंत देव्यागिरि सिर्फ आध्यात्मिक गुरु ही नहीं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत बन चुकी हैं, जिन्होंने संत समाज में महिलाओं के लिए नए रास्ते खोले हैं और उनकी प्रेरणादायक यात्रा लगातार आगे बढ़ रही है।