भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को हुए सीजफायर के बाद, विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने मीडिया को इसकी जानकारी दी। इस सीजफायर की घोषणा के बाद, उन्होंने महज 46 सेकंड में अपनी बात पूरी की और प्रेस वार्ता खत्म कर दी। हालांकि, विक्रम मिसरी का यह संक्षिप्त बयान उनके लिए मुश्किलों का कारण बन गया। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जाने लगा, जिस कारण उन्होंने अपना ट्विटर अकाउंट प्राइवेट कर लिया। इस विवाद ने राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू कर दिया, जिसमें नेताओं और नागरिकों ने अपनी-अपनी राय दी।
सीजफायर की घोषणा और विक्रम मिसरी का बयान
10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा के बाद, विक्रम मिसरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इसके बारे में जानकारी दी। इस बैठक में उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच हालात शांतिपूर्वक बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया है। इस दौरान, उनकी प्रेस वार्ता में समय की कमी और संक्षिप्तता पर ध्यान आकर्षित हुआ, क्योंकि उन्होंने 46 सेकंड में अपनी बात पूरी की और प्रेस वार्ता समाप्त कर दी।
हालांकि, कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान द्वारा सीमा पर गोलीबारी की घटना हुई, जिससे यह प्रतीत हुआ कि सीजफायर का पालन नहीं किया जा रहा। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर विक्रम मिसरी को जमकर ट्रोल किया गया। कई यूजर्स ने उनकी बातों को लेकर सवाल उठाए और आरोप लगाया कि उनके बयान में कोई प्रभाव नहीं था। इस ट्रोलिंग से परेशान होकर विक्रम मिसरी ने अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल को प्राइवेट कर दिया।
कांग्रेस और सपा नेताओं का समर्थन
इस विवाद के बाद, कई प्रमुख नेताओं ने विक्रम मिसरी का समर्थन किया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला ने मिसरी की तारीफ की। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि "विक्रम मिसरी एक बेहतरीन अधिकारी हैं और उनके पूरे करियर में उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा है।" उन्होंने कहा कि संसदीय स्थायी समिति में उन्होंने विक्रम मिसरी को बेहतरीन काम करते देखा है, और सांसदों को उनकी त्वरित प्रतिक्रियाएं बहुत पसंद आई हैं।
इस समर्थन के बाद, समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मामले में विक्रम मिसरी का बचाव किया। उन्होंने विक्रम मिसरी और उनके परिवार के खिलाफ सोशल मीडिया पर हो रही ट्रोलिंग पर सवाल उठाए। अखिलेश यादव ने कहा कि कुछ असामाजिक और आपराधिक तत्व विदेश सचिव और उनके परिवार के खिलाफ अपशब्दों की सीमाएं तोड़ रहे हैं, जबकि भाजपा सरकार और उसके मंत्री इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।
अखिलेश यादव ने कहा कि यह पूरी स्थिति सरकार की जिम्मेदारी है, और अधिकारी को किसी फैसले के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उनका यह भी कहना था कि यह कदम एक ईमानदार अधिकारी का मनोबल तोड़ने वाला है और सरकार को इस मामले की गहराई से जांच करनी चाहिए।
ओवैसी और अन्य नेताओं का भी समर्थन
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी विक्रम मिसरी का समर्थन किया। उन्होंने कहा, "विक्रम मिसरी हमारे देश के लिए बिना रुके-थके काम करने वाले ईमानदार डिप्लोमैट हैं।" ओवैसी ने यह भी कहा कि हमारे सिविल सर्वेंट सरकार के अधीन काम करते हैं और शासन द्वारा लिए गए फैसले के लिए अधिकारी को दोषी नहीं ठहराना चाहिए।
विक्रम मिसरी का करियर और उनके योगदान
विक्रम मिसरी की विदेश सेवा में एक लंबी और प्रतिष्ठित पृष्ठभूमि है। वे 2024 में भारत के विदेश सचिव बने थे, और इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह के प्राइवेट सेक्रेटरी के तौर पर काम किया था। विक्रम मिसरी की कड़ी मेहनत और उनके अनुभव को लेकर उन्हें काफी सराहना मिली है, और उन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक मिशनों में भाग लिया है।
उनके अनुभव को देखते हुए कई लोग यह मानते हैं कि उन्हें ट्रोल करना और उन पर आरोप लगाना उचित नहीं है, क्योंकि वे अपने पद के तहत केवल सरकार के फैसलों को लागू कर रहे थे। हालांकि, ट्रोलिंग के चलते विक्रम मिसरी को एक और नई चुनौती का सामना करना पड़ा है, जो इस बात का संकेत है कि सोशल मीडिया की दुनिया में किसी भी व्यक्ति को सम्मानजनक तरीके से पेश किया जाना कितना महत्वपूर्ण है।
सरकार की चुप्पी और ट्रोलिंग का असर
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार इस ट्रोलिंग पर चुप क्यों है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और अन्य नेताओं ने इस पर सवाल उठाया है कि जब विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनके परिवार के खिलाफ सोशल मीडिया पर इस तरह की आपत्तिजनक टिप्पणियां की जा रही हैं, तो सरकार और उसके मंत्री इस पर चुप क्यों हैं। यह बात इस संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि सोशल मीडिया पर होने वाली ट्रोलिंग से किसी व्यक्ति का मानसिक और सामाजिक स्तर पर कितना नुकसान हो सकता है।
निष्कर्ष
विक्रम मिसरी पर हो रही ट्रोलिंग और सोशल मीडिया विवाद ने यह साबित किया है कि समाज में सम्मान की कमी कितनी तेजी से फैल सकती है, खासकर जब व्यक्ति का काम और कर्तव्य सरकार की तरफ से निर्धारित किया जाता है। विक्रम मिसरी का काम करना, उनके फैसले और उनका योगदान किसी व्यक्तिगत आलोचना से परे हैं। इस मामले में सरकार और समाज को यह समझने की जरूरत है कि ट्रोलिंग से किसी भी अधिकारी का मनोबल टूट सकता है और इसका प्रभाव उनके काम पर पड़ सकता है।